सीन 1:
गांव का कोनाबहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव के किनारे, एक बूढ़ा आदमी अकेला रहता था। उसका नाम था बाबा जीवन। वह हर दिन सुबह सूरज उगने से पहले उठ जाता, मंदिर जाता, फिर खेतों में काम करता। लेकिन अब उम्र हो गई थी, शरीर जवाब देने लगा था।

—सीन 2:
बेल से मुलाकातएक दिन जब बाबा जीवन अपने पुराने खेत में गया, तो उसे वहां एक सूखा सा बेल (बैल) पड़ा मिला। उसकी आंखों में थकान थी और शरीर में हड्डियों के सिवा कुछ नहीं बचा था। लगता था जैसे किसी ने उसे छोड़ दिया हो।बाबा ने उसे देखा, उसके पास बैठ गया। बेल की आंखों से भी बूढ़े बाबा जैसा ही अकेलापन झलक रहा था।

-सीन 3:
अपनापनबाबा जीवन ने बेल को घर ले जाने का फैसला किया। उसने अपने घर के पास बेल के लिए एक छोटा सा शेड बनाया, हर रोज़ उसके लिए घास लाता, पानी देता, और धीरे-धीरे बेल फिर से तंदुरुस्त होने लगा।अब बाबा और बेल दोनों एक-दूसरे के साथी बन गए थे।

सीन 4:
नयी शुरुआतकुछ ही महीनों में बेल फिर से मजबूत हो गया। अब वह बाबा के साथ गांव के मंदिर तक जाता, कभी लकड़ियों की गाड़ी खींचता, तो कभी बच्चों को सवारी कराता।गांव के लोग अब उन्हें “बाबा-बेल की जोड़ी” कहने लगे थे।

-सीन 5:
आखिरी दिनएक रात, जब सब कुछ सामान्य था, बाबा जीवन ने अपने कमरे में बैठे-बैठे आंखें बंद कर लीं। अगली सुबह जब गांववाले आए, तो बाबा शांत सोए हुए थे… हमेशा के लिए।बेल बाबा के कमरे के बाहर बैठा रहा… ना कुछ खाया, ना हिला… तीन दिन तक।
–सीन 6:
विरासतगांववालों ने बाबा जीवन को पूरे सम्मान के साथ विदा किया। बेल को अब गांव का ‘धरोहर पशु’ घोषित कर दिया गया। उसकी देखभाल अब पूरा गांव करने लगा।कहते हैं — जब भी कोई नया बच्चा जन्म लेता है, सबसे पहले वह बेल के पास ले जाया जाता है, जैसे वह बाबा की आत्मा हो।
कहानी से सीख:
अकेलापन जब दो लोग बांटते हैं, तो वो साथ बन जाता1 है।
प्यार और सेवा किसी भी प्राणी को फिर से ज़िंदा कर सकते हैं।
इंसान और जानवर2 में भी सच्चा रिश्ता बन सकता है, बस उसे समझने वाला दिल चाहिए।